बचपन से ही सुनता आ रहा हूं. 'तुम बहुत बड़े गोलेबाज हो . लोग एक दूसरे को अक्सर गोलेबाज कह दिया करते हैं. लोग इतनी कम उम्र में कैसे ये बात समझ गए. शायद उनके पास कोई न कोई एक्स्ट्राआर्डिनरी दिमाग होगा. या फिर हो सकता है कि कुछ लोग जो बिना सोंचे समझे बोल दिया करते हें उनके पास दिमाग ही न हो. मेरे दिमाग में ये बात आने में पत्रकारिता का डेढ़ साल से भी ज्यादा का समय लग गया. गोला क्या होता है और गोलेबाज किसे कहते हैं और कैसे फेंका जाता है. यह बात तो मैं डेढ़ साल की पत्रकारिता के बाद लगभग 30 परसेंट तक ही समझ पाया हूं. पूरी तरह से समझने के लिए अभी घिसना होगा. हां इस दौरान यह भी समझ गया कि गोले भी दो प्रकार के होते हैं
1। इमानदार गोला
2. वास्तविक गोला
गोलेबाज पत्रकार
दरअसल सबसे बड़े गोलेबाज पत्रकार होते हैं. जो कि मुझे कुछ समय पहले ही समझ में आया है. हो सकता है कि आगे यह धारणा बदल जाए. या फिर और अधिक गहरी हो जाए. ये सब जानने में सबसे बड़ा रोल मेरे आदरणीय सीनियर्स का है. इमानदार गोलेबाजी की बात की है तो इमानदारी से गोलेबाजी कैसे करते हैं इस पर भी चर्चा कर ही ली जाए. सुबह एक पत्रकार आफिस से निकलता है तो उसे तमाम तरह के रायते पकड़ा दिए जाते हैं. मसलन तुम्हें तीन स्पेशल स्टोरीज करना हैं. इसके अलावा दो तीन कांफ्रेंस तो रूटीन हैं वह तो तुम्हारा धर्म और कर्तव्य व ड्यूटी है. हंगामा और कुछ अन्य रायते तो निपटा ही लोगे. बेचारा पत्रकार जब मीटिंग के बाद इस विचार करना शुरू करता है कि पहले किस स्टोरी पर काम किया जाय तो आधे घंटे उसके इसी में ही खर्च हो जाते हैं कि पहले कहां जाया जाय. उसके बाद जब वह निकलता है तो कोई न कोई बयाना उसके पास आ जाता है. जैसे डेली कोई न कोई रोगी कराहता हुआ इंतजार करता रहता है कि पहले मुझे डॉक्टर साहब को दिखा दो. उनसे निपटाया तो पहुंचे पहली कांफ्रेंस में. अलग खबर निकालने के चक्कर में वहां पर घंटों बिता दिए. खबर मिली तो जल्दी-जल्दी निकले. दूसरी जगह पहुंचने से पहले ही ख्याल आया कि यार अभी प्लांड खबरे तो हुई ही नहीं. इसी दौरान पापा के फ्रेंड का फोन आता है . वह भी डॉक्टर साहब के केबिन के अंदर प्रवेश करते ही. डॉक्टर निकलने वाले थे ओटी के लिए. पत्रकार साहब अपना फोन काट देते. क्योंकि पहले खबर.यह हुआ पहला इमानदार गोला. पापा के फ्रेंड ने समझा कि ये फोन ही नहीं उठाते हैं.
वहां से निपटे तो एक फ्रेंड का फोन आ गया कि भाई मैं यहां पर खड़ा इंतजार कर रहा हूं. आपसे थोड़ा काम है. तुरंत पत्रकार साहब बोलते हैं कि हां वहीं रुको मैं आ रहा हूं. उतने में फोन आता है कि सीएसएमएमयू में हंगामा हो गया है पत्रकार साहब तुरंत बाइक उठाकर भाग जाते हैं. फ्रेंड बेचारा खड़ा इंतजार कर रहा है. यह रहा दूसरा गोला. वहां पर पहुंच कर लोगों से बात कर ही रहे थे कि फ्रेंड का फोन आ जाता है रेप्लाई में कहते हैंकि भाई बस पांच मिनट. लेकिन समय लगना है 1 घंटा. ये रहा तीसरा गोला. ध्यान रहे सभी गोले इमानदारी के हैं. पेशेंट से बात कर रहे हैं उतने में सीनियर का फोन आ जाता है पत्रकार महोदय सिचुएशन देखकर फोन नहीं उठा पाते. उन्हें लगा कि अगर डॉक्टर या नर्स आ गए तो पेशेंट से बात नहीं हो पाएगी और सारी एक्सक्लूसिवनेस चौपट हो जाएगी. फोन नहीं उठा. उधर सीनियर का पारा हाई.
एक घंटे बाद सीनियर को फोन मिलाया. सीनियर का पारा आसमान पर. कभी कभी अगर ज्यादा लेट हो गए सीनियर साहब कहेंगे कि तुम्हारे ज्यादा दिमाग खराब हो गए हैं फोन नहीं उठाया बहुत बड़े अधिकारी हो गए हो? अब उन्हें कौन बताए कि पत्रकार साहब इमानदार गोला फेंक रहे हैं. इस पूरे दिन के सिड्यूल में पापा, मम्मी, भाई, ढेर सारे दोस्तों और खबर छापने के लिए भी कुछ लोगों के फोन आ जाते हैं. वह सिचुएशन नहीं समझते और फोन रिसीव होते ही अपनी बात तेजी से कम्प्लीट करने में जुट जाते हैं. उन्हें पता है कि ये पत्रकार फोन काटने की जल्दी में है उनका इतना सोंचना होता है और फोन यह कहकर काट दिया जाता है कि मैं बाद में फोन करुंगा. लेकिन बाद में फोन करने का समय नहीं आता. और इन सभी को पूरी ईमानदारी से गोले के ऊपर गोले मिलते हैं. वे बेचारे सभी गरियाते हुए फोन काट देते हैं. अब इन इमानदार गोलों में भला पत्रकार महोदय का क्या दोष? इतने सारी मेहनत और ढेर सारे गोले फेंकने के बावजूद उन्हें अगले दिन की खबर का भी इंतजाम करना होता है. अब पत्रकार साहब गोला न फेंके तो क्या करें? आप ही बताएं?
ये सिर्फ दो या फिर तीन गोलों की चर्चा की. जो कि इमानदारी से किए गए. कभी कभी 10-12 इमानदार गोलों के चक्कर में एक आध वास्तविक वाला गोला हो जाता है. लेकिन वह चार छ: महीने में कही एक बार ही हो पाता. लेकिन उन्हें कोई गेस नहीं कर पाता. आपके पास भी कुछ गोलें हों तो शेयर जरूर करें. क्योंकि अब मैं आफिस में प्रवेश कर रहा हूं नहीं तो मेरे डेस्क वाले साथी खबर लेट फाइल करने पर नाराज हो जाएंगे. .............................................शेष अगले दिन. गोले फेंकने के बाद....
1। इमानदार गोला
2. वास्तविक गोला
गोलेबाज पत्रकार
दरअसल सबसे बड़े गोलेबाज पत्रकार होते हैं. जो कि मुझे कुछ समय पहले ही समझ में आया है. हो सकता है कि आगे यह धारणा बदल जाए. या फिर और अधिक गहरी हो जाए. ये सब जानने में सबसे बड़ा रोल मेरे आदरणीय सीनियर्स का है. इमानदार गोलेबाजी की बात की है तो इमानदारी से गोलेबाजी कैसे करते हैं इस पर भी चर्चा कर ही ली जाए. सुबह एक पत्रकार आफिस से निकलता है तो उसे तमाम तरह के रायते पकड़ा दिए जाते हैं. मसलन तुम्हें तीन स्पेशल स्टोरीज करना हैं. इसके अलावा दो तीन कांफ्रेंस तो रूटीन हैं वह तो तुम्हारा धर्म और कर्तव्य व ड्यूटी है. हंगामा और कुछ अन्य रायते तो निपटा ही लोगे. बेचारा पत्रकार जब मीटिंग के बाद इस विचार करना शुरू करता है कि पहले किस स्टोरी पर काम किया जाय तो आधे घंटे उसके इसी में ही खर्च हो जाते हैं कि पहले कहां जाया जाय. उसके बाद जब वह निकलता है तो कोई न कोई बयाना उसके पास आ जाता है. जैसे डेली कोई न कोई रोगी कराहता हुआ इंतजार करता रहता है कि पहले मुझे डॉक्टर साहब को दिखा दो. उनसे निपटाया तो पहुंचे पहली कांफ्रेंस में. अलग खबर निकालने के चक्कर में वहां पर घंटों बिता दिए. खबर मिली तो जल्दी-जल्दी निकले. दूसरी जगह पहुंचने से पहले ही ख्याल आया कि यार अभी प्लांड खबरे तो हुई ही नहीं. इसी दौरान पापा के फ्रेंड का फोन आता है . वह भी डॉक्टर साहब के केबिन के अंदर प्रवेश करते ही. डॉक्टर निकलने वाले थे ओटी के लिए. पत्रकार साहब अपना फोन काट देते. क्योंकि पहले खबर.यह हुआ पहला इमानदार गोला. पापा के फ्रेंड ने समझा कि ये फोन ही नहीं उठाते हैं.
वहां से निपटे तो एक फ्रेंड का फोन आ गया कि भाई मैं यहां पर खड़ा इंतजार कर रहा हूं. आपसे थोड़ा काम है. तुरंत पत्रकार साहब बोलते हैं कि हां वहीं रुको मैं आ रहा हूं. उतने में फोन आता है कि सीएसएमएमयू में हंगामा हो गया है पत्रकार साहब तुरंत बाइक उठाकर भाग जाते हैं. फ्रेंड बेचारा खड़ा इंतजार कर रहा है. यह रहा दूसरा गोला. वहां पर पहुंच कर लोगों से बात कर ही रहे थे कि फ्रेंड का फोन आ जाता है रेप्लाई में कहते हैंकि भाई बस पांच मिनट. लेकिन समय लगना है 1 घंटा. ये रहा तीसरा गोला. ध्यान रहे सभी गोले इमानदारी के हैं. पेशेंट से बात कर रहे हैं उतने में सीनियर का फोन आ जाता है पत्रकार महोदय सिचुएशन देखकर फोन नहीं उठा पाते. उन्हें लगा कि अगर डॉक्टर या नर्स आ गए तो पेशेंट से बात नहीं हो पाएगी और सारी एक्सक्लूसिवनेस चौपट हो जाएगी. फोन नहीं उठा. उधर सीनियर का पारा हाई.
एक घंटे बाद सीनियर को फोन मिलाया. सीनियर का पारा आसमान पर. कभी कभी अगर ज्यादा लेट हो गए सीनियर साहब कहेंगे कि तुम्हारे ज्यादा दिमाग खराब हो गए हैं फोन नहीं उठाया बहुत बड़े अधिकारी हो गए हो? अब उन्हें कौन बताए कि पत्रकार साहब इमानदार गोला फेंक रहे हैं. इस पूरे दिन के सिड्यूल में पापा, मम्मी, भाई, ढेर सारे दोस्तों और खबर छापने के लिए भी कुछ लोगों के फोन आ जाते हैं. वह सिचुएशन नहीं समझते और फोन रिसीव होते ही अपनी बात तेजी से कम्प्लीट करने में जुट जाते हैं. उन्हें पता है कि ये पत्रकार फोन काटने की जल्दी में है उनका इतना सोंचना होता है और फोन यह कहकर काट दिया जाता है कि मैं बाद में फोन करुंगा. लेकिन बाद में फोन करने का समय नहीं आता. और इन सभी को पूरी ईमानदारी से गोले के ऊपर गोले मिलते हैं. वे बेचारे सभी गरियाते हुए फोन काट देते हैं. अब इन इमानदार गोलों में भला पत्रकार महोदय का क्या दोष? इतने सारी मेहनत और ढेर सारे गोले फेंकने के बावजूद उन्हें अगले दिन की खबर का भी इंतजाम करना होता है. अब पत्रकार साहब गोला न फेंके तो क्या करें? आप ही बताएं?
ये सिर्फ दो या फिर तीन गोलों की चर्चा की. जो कि इमानदारी से किए गए. कभी कभी 10-12 इमानदार गोलों के चक्कर में एक आध वास्तविक वाला गोला हो जाता है. लेकिन वह चार छ: महीने में कही एक बार ही हो पाता. लेकिन उन्हें कोई गेस नहीं कर पाता. आपके पास भी कुछ गोलें हों तो शेयर जरूर करें. क्योंकि अब मैं आफिस में प्रवेश कर रहा हूं नहीं तो मेरे डेस्क वाले साथी खबर लेट फाइल करने पर नाराज हो जाएंगे. .............................................शेष अगले दिन. गोले फेंकने के बाद....
nice start ab chunauti hai performace kayam rakhne ki
ReplyDeleteगोले से शुरुआत तो अच्छी है जनाब . अब समझ में आया कि फ़ोन क्यों नहीं उठाया जाता. कोई बात नहीं अपने कम के लिए गोले देते रहो . इमानदार गोले तक तो ठीक है,वास्तविक गोला देने पर टागें सलामत नहीं होगी.बेस्ट ऑफ़ लक
ReplyDeleteGood beta, rayeta ki bahut jarurat thi.Aur tum ne phela diya. Just keep it up. My best wishhes are always with you
ReplyDeleteaccha likha hai dost.
ReplyDeletewell u have successfully shown the proper utilization of golaass in a very practical way.but bhaijaan u should be careful the dilemma of these two golaas..otherwise they can intersect and the story of excuses will have to begin.......
ReplyDeletewaisee majedaar likha hai
kichri baigar raite ki jamti nahi.
ReplyDeleteAur agar raita phail gaya ho to phir kichri ka kya hashra hoga... ye zaroor sochne wali baat hai...
raita aur kichri aaj ki rajniti aur patrakarita hai!!!
Bahral aap phakiye gole aur ham catch karte hai!!
Nice start bro...but i don't agree with ur this concept of "Golebaazi". In my view everything can be managed if u r willing to do so... so instead of thinking of "Golas" we shuld think of its solutions....bcoz if problem is there then its solution is always there... wish u all very best...!!!
ReplyDeleteLikhe to badhiya ho guru. Hum soch rahe hain ki tum hamein kab kab gola diye ho. By the way all the best for your future endeavors.
ReplyDeletemasaaledaar kha-khakar badhajami ki shikayat si hone lagi thi. aise mein janaab ka raayta rahat dene ki aas jaga baitha hai... ummid hai rayte ki dose nirantar, bina aprabhavit aur khabron ki khataas ke beech chasni ka kaam karega.... Ahaaaaaaaaaaa.
ReplyDeletecha gaye guru GOLA fenkar............
ReplyDeleteEk patrakaar ke dil ke dard ko badey hi asan tarikey se zahir kar diya apney. Its good!
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